वो 90 के दशक की आशिक़ी

 

Poem by Baawri Basanti

वो पीले फूलों का बाग़

वो हल्के रंगो की शाम 

तुम वही मिलना मुझसे 

जिस मोड़ पे आख़िरी बार लिया था मेरा नाम


इत्तेफ़ाक़ से मिले थे हम

और शिद्दत से निभाया था हमने प्यार

कहाँ वो 90 के दशक की आशिक़ी

और कहाँ आजकल का हैशटेग-वैशटेग सा व्यापार


दिन गुज़ारे थे साथ हमने 

बांधा था सपनों का संसार

कब सोचा था मैंने कि मैं रह जाऊँगी दिल्ली में

और तुम बस जाओगे सात समुंदर पार 


सुना है वहाँ बर्फ गिरती है खूब 

लोग वहाँ चाय कम कॉफ़ी ज़्यादा पीते हैं 

और यहाँ चाय की हर एक चुस्की पे जनाब

कॉलेज के दिनों को हम लाखों बार जीते हैं 


बहुत उधेड़ बून करती हूँ मैं

बहुत सोचती हूँ तुम्हारे बारे में 

तुम काफ़ी आगे बढ़ गाये

और मैं रह गई किनारे पे 


खनक आज भी है 

तेरी मद्धम सी आवाज़ की ज़िंदा

मेरी बचकानी बातों पे 

तुमने नहीं किया था मुझे कभी शर्मिंदा 


रेत से थे तुम 

तुम्हें मुट्ठी में बांध नहीं पाई

कहाँ सागर, कहाँ साहिल 

और ये हज़ार मीलों की जुदाई


सुना है तुम दिसंबर में आ रहे हो

हर बार की तरह 4 हफ़्ते के लिए

तुम हमेशा लाते हो महंगे तोहफे 

और मैंने तुम्हे सिर्फ ताने ही दिए 



क्या कोई नाम है इस रिश्ते का 

क्या कोई हक़ है मेरा तुम पर 

कभी सिसक सी उठती है दिल पे तुम्हारे 

मेरा ज़िक्र सुन कर 


हर बार की तरह इस बार भी मिलना वही 

जिस  मोड़ पे आख़िरी बार लिया था मेरा नाम

रास्ते भला जुदा हो हमारे 

तुम ही हो मेरी मंज़िल, तुम ही मेरा मक़ाम

Comments

  1. Ekhi dil hai
    Kitni baar jeetogi aap..!❤️
    Btw happy ❤️day...

    ReplyDelete
  2. Uff🧡 khoobsurat:)

    ReplyDelete
  3. Wow...
    I don't just read it, I always live these moments while reading your poems/shayari

    ReplyDelete

Post a Comment

Bricks, brickbats, applause - say it in comments!

Popular posts from this blog

Rewind - September 2023

यूँ दो चार घंटे के लिए नहीं

I Am Not Alone