मजधार
तुमको हो मालूम तो बताना, कौन सा रास्ता खुशियों की तरफ जाता हैं! लहरों से जूझते हुए पता नहीं, साहिल कब, कहाँ नज़र आता हैं!! इक कश्ती पे सवार थी, बहुत दूर मंजिल थी मेरी, मजधार में जो साथ टूटा, बेवक्त रोना न जाने किस किस बात पे आता है! तुमको हो मालूम तो बताना, कौन सा रास्ता खुशियों की तरफ जाता हैं! बोझ है मेरे सीने पर कई, रात दिन उस आस में 'नई', रेत के घरोंदे सा मेरा मन, हर चीस पे ढेह जाता है! तुमको हो मालूम तो बताना, कौन सा रास्ता खुशियों की तरफ जाता हैं! बिन पूछे कोई सवाल, लहरों के संग संग बहूँगी, जिंदा हूँ गर आज भी, तो जिंदा ही रहूंगी, उसके नाम को दफ़न करने के बाद, उसकी यादों से रिश्ता बन जाता है! पर गर तुमको हो मालूम तो बताना, कौन सा रास्ता खुशियों की तरफ जाता हैं! * This poem tries to portray the feelings of a friend who lost her husband in an accident a week back. He was hit by a car driven by young boys who were heavily drunk. It was her first birthday after marriage and she is seven months pregnant.